संघर्ष, अनुशासन और परिवार के सहयोग से पाई बड़ी सफलता – बिहार का बेटा अब करेगा देशसेवा
पटना। बिहार की धरती ने कई महान चिकित्सक दिए हैं और अब इसी कड़ी में जुड़ गया है एक और नाम – कुमार सुमित। चीन से MBBS की पढ़ाई कर लौटे पटना के सुमित ने हाल ही में भारत की कठिनतम परीक्षाओं में से एक Foreign Medical Graduate Examination (FMGE) पास कर लिया है। इस परीक्षा का पास प्रतिशत इस बार मात्र 18% रहा, बावजूद इसके सुमित ने अपनी मेहनत और लगन से बाज़ी मार ली।
बचपन का सपना – डॉक्टर बनने की चाह
सुमित का सपना बचपन से ही डॉक्टर बनने का था। वे स्कूल के दिनों से ही पढ़ाई में तेज़ रहे और विज्ञान विषयों में गहरी रुचि रखते थे। घर में अक्सर वे कहते थे कि वे बड़े होकर “गरीबों का इलाज करने वाले डॉक्टर” बनेंगे। परिवार के साधन सीमित थे, लेकिन उनकी इच्छाशक्ति असीम थी।
चुनौतियों के बीच मिला रास्ता
भारत में MBBS की सीटों की संख्या बहुत सीमित है। हर साल लाखों छात्र NEET परीक्षा देते हैं, लेकिन केवल कुछ प्रतिशत को ही सरकारी कॉलेज में मौका मिलता है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की ऊँची फीस आम परिवार के लिए असंभव है। ऐसे में सुमित और उनके परिवार ने विदेश से पढ़ाई करने का निर्णय लिया।
चाचा श्री राज सिंह देव सिंह ने उन्हें हिम्मत दी और सही मार्गदर्शन दिया। परिवार ने कठिनाइयों के बावजूद उनकी पढ़ाई के लिए हर संभव सहयोग किया।
चीन में MBBS – पढ़ाई और अनुभव
सुमित बताते हैं कि चीन में पढ़ाई करना उनके लिए एक यादगार अनुभव रहा। वहाँ के मेडिकल विश्वविद्यालयों में आधुनिक हॉस्पिटल्स, लैब्स और रिसर्च सुविधाएँ उपलब्ध थीं।
वे कहते हैं—
"हमारे यहाँ रोज़ मरीजों से जुड़ने का मौका मिलता था। वहाँ की शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं बल्कि प्रैक्टिकल पर आधारित थी।"
कोरोना काल का अनुभव भी उनके लिए यादगार रहा। चीन में पढ़ाई के दौरान महामारी के कारण क्लासेज़ ऑनलाइन चली गईं। यह समय चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। ऑनलाइन लेक्चर्स और सेल्फ-स्टडी के जरिए पढ़ाई जारी रखी।
FMGE परीक्षा की तैयारी
भारत लौटने के बाद उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी FMGE पास करना। यह परीक्षा दो हिस्सों में होती है और इसमें मेडिसिन, सर्जरी, पेडियाट्रिक्स, गायनोकॉलॉजी, फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी जैसे सभी विषय शामिल होते हैं।
सुमित की तैयारी का तरीका अलग था –
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हर दिन 10-12 घंटे की पढ़ाई
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विषयवार रिवीजन शेड्यूल
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पुराने सालों के प्रश्नपत्र हल करना
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ऑनलाइन टेस्ट सीरीज़ के माध्यम से आत्ममूल्यांकन
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और सबसे ज़रूरी – धैर्य और आत्मविश्वास
"कई बार थकान होती थी, लेकिन जब भी हतोत्साहित हुआ, चाचा और परिवार ने मुझे संभाला। उनका भरोसा मेरी ताक़त बना," सुमित ने कहा।
परिवार की भूमिका
सुमित की सफलता में परिवार का योगदान सबसे अहम रहा। उनके माता-पिता ने त्याग और सहयोग की मिसाल पेश की। चाचा राज सिंह देव सिंह हमेशा एक मार्गदर्शक की तरह उनके साथ खड़े रहे।
राज सिंह देव सिंह कहते हैं—
"हमने हमेशा सुमित से कहा कि असफलता से डरना नहीं है। पढ़ाई का फल एक दिन ज़रूर मिलेगा। आज उसका सपना सच होते देखकर हमें गर्व है।"
समाज और युवाओं के लिए संदेश
सुमित का मानना है कि डॉक्टर बनना केवल डिग्री लेने का नाम नहीं है बल्कि यह समाज के प्रति ज़िम्मेदारी है।
वे कहते हैं—
"मेरे जैसे कई छात्र हैं जो बजट और सीमित साधनों के कारण परेशान रहते हैं। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि अगर इच्छाशक्ति मज़बूत हो और सही योजना से मेहनत की जाए, तो सफलता ज़रूर मिलती है। हार कभी नहीं माननी चाहिए।"
आगे का लक्ष्य
अब सुमित का अगला लक्ष्य है कि वे भारत में मेडिकल प्रैक्टिस शुरू करें और आगे किसी विशेष शाखा में विशेषज्ञता (MD/MS) हासिल करें। वे भविष्य में कार्डियोलॉजी या ऑन्कोलॉजी जैसे क्षेत्रों में काम करना चाहते हैं।
उनका सपना है—
"मैं चाहता हूँ कि बिहार और भारत के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को पूरा करने में योगदान दूँ। गरीबों को सस्ता और सुलभ इलाज मिलना चाहिए। यही मेरी डॉक्टर बनने की असली वजह है।"
पटना में जश्न का माहौल
सुमित की सफलता से पटना में जश्न का माहौल है। मोहल्ले और रिश्तेदारों ने उनके घर पहुँचकर मिठाई बाँटी। सोशल मीडिया पर बधाइयों की बाढ़ आ गई। लोग कह रहे हैं कि सुमित ने न सिर्फ़ अपने परिवार बल्कि पूरे बिहार का नाम रोशन किया है।
निष्कर्ष
कुमार सुमित की कहानी सिर्फ एक छात्र की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह संदेश है कि संघर्ष, मेहनत, परिवार का सहयोग और सही दिशा से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।
उन्होंने साबित कर दिया है कि चाहे राह कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर इरादे मजबूत हों तो मंज़िल तक पहुँचना संभव है।

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